Wednesday, March 6, 2013

हमारी एक अहम टिप्पणी, जिसे ख़ुद को फंसते देखकर मिटा डाला गया


हिंदी ब्लॉगर शिल्पा मेहता जी ने एक बहुत अच्छा सवाल खड़ा किया है कि 
इस पोस्ट पर हमने उनसे संवाद किया। उन्होंने हमारी 2 टिप्पणियां प्रकाशित कीं। उनमें कोई आपत्तिजनक बात न होने के बावजूद उन्होंने उन पर बहस शुरू कर दी और जब वे बहस में फंस गईं तो ब्लॉग मॉडरेडर ने हमारी तीसरी टिप्पणी डिलीट कर दी। उस तीसरी टिप्पणी को आप यहां देख सकते हैं। हम अपने ‘कॉमेन्ट्स गार्डन‘ में अपनी अहम टिप्पणियों को संजो लेते हैं।
ईश्वर कल्याणकारी मार्ग दिखाता है। धर्म सही होता है और महापुरूष उसके अनुकूल आचरण करके दिखाते हैं। इसके लिए वे कष्ट का जीवन जीते हैं और बलिदान देते हैं। ईश्वर की वाणी और महापुरूषों का आचरण निर्दोष होता है।
उनके सैकड़ों हज़ारों वर्ष बाद जब उसे लिखा जाता है तो कवि उसमें साहित्य सुलभ कल्पना और अलंकारों का समावेश कर देते हैं। बाद में हर तरह के मनुष्य होते हैं। कुछ के लिए सत्य के बजाय स्वार्थ प्रधान हो जाता है। ये साहित्य में क्षेपक करते हैं। कला, विज्ञान और अध्यात्म के क्षेत्र में नए प्रयोग होने से भी कुछ परिवर्तन होते चले जाते हैं।
जो ईश्वर, धर्म और महापुरूषों को उनके मूल स्वरूप में पहचानते हैं वे उनकी आलोचना नहीं करते। जो आलोचना करते हैं वे ईश्वर, धर्म और महापुरूषों को उनके मूल स्वरूप में नहीं पहचानते।
  1. that is true - but unfortunately, i have seen a very insulting post on the shivlinga on your own blog respected jamaal ji
  2. अगर आपने हमारे किसी ब्लॉग पर ऐसी कोई पोस्ट देखी है तो कृप्या आप सूचित करें। अगर उस पोस्ट का मक़सद शिव जी का अपमान करना होगा तो उसे तुरंत हटा दिया जाएगा। हमसे ज़्यादा शिव जी का सम्मान करने वाला यहां ब्लॉग जगत में दूसरा कोई नहीं है। जब कभी हमने दूसरे की आपत्तिजनक पोस्ट देखी तो हमेशा उसका ख़ुद भी विरोध किया और दूसरों से भी करवाया। हो सकता है कि आपको समझने में कुछ ग़लतफ़हमी हो रही हो।
    बताईये कि वह कौन सी पोस्ट है और आपको उसमें हमारी ओर से कौन सी बात अपमानजनक लग रही है ?
    हम आपके आभारी रहेंगे !

    हमारे लिए भी आपकी यह पोस्ट आश्चर्य पैदा कर रही है। अभी थोड़े दिन पहले आप स्वयं वैदिक यज्ञों और मंदिरों में पशुबलि की आलोचना कर रही थीं और ऐसा करने वालों से उसे छोड़ने की अपील भी कर रही थीं।

    क्या हिन्दू धर्मग्रंथ आपको ऐसी आलोचना और अपील करने का अधिकार देते हैं ?
  3. उस पोस्ट को आपने स्वयं ही "एक हिन्दू भाई ने लिखा" से शुरू कर पोस्ट किया है । इस पर श्याम गुप्ता जी समीक्षासिंह जी की आपत्तियां भी , कि इसे आप हटा लीजिये, आपने मना कर दिया । तो अब मेरे कहने से आप भला क्यों इसे हटाएंगे ? instead - a discussion will start here about that post - which i do not want on my blog ...

    मैं यहाँ इस पोस्ट का लिंक न तो खुद दूँगी, न ही यदि आपने दिया तो प्रकाशित करूंगी । आप भी जानते हैं और मैं भी , कि किस पोस्ट की बात कर रही हूँ मैं - आप चाहें तो उसे अभी ही हटा लीजिये - लिंक की कोई आवश्यकता ही नहीं रहेगी ।

    हिन्दू धर्म के अनुयायियों से यह अपील इसीलिए की , क्योंकि वे तो "उदारता" और "अकट्टरता" के जोश में यह सब लिखते हैं, लेकिन उनकी लिखी बात को
    "हिन्दू भाई ऐसा सोचते हैं"
    का जामा पहना कर पेश किया जाता है । इस पोस्ट पर आई मिश्र जी की टिपण्णी का भी एक भाग आपने "अरविन्द मिश्र जी कहते हैं" कह कर पोस्ट लगाईं है ।
  4. @@ हमारे लिए भी आपकी यह पोस्ट आश्चर्य पैदा कर रही है। अभी थोड़े दिन पहले आप स्वयं वैदिक यज्ञों और मंदिरों में पशुबलि की आलोचना कर रही थीं और ऐसा करने वालों से उसे छोड़ने की अपील भी कर रही थीं।
    क्या हिन्दू धर्मग्रंथ आपको ऐसी आलोचना और अपील करने का अधिकार देते हैं ?

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    - हाँ - देते हैं ।
    और हाँ , अपने ही धर्म को समझने के लिए मुझे आपकी सलाह की आवश्यकता नहीं - मेरे पास अपने स्रोत हैं | आभार ।
  5. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
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    हटा दी गयी टिप्पणी यह है-
    आदरणीया, सलाह और प्रश्न में अंतर होता है और उसके अंत में प्रश्न चिन्ह भी बना होता है। हमने आपको सलाह नहीं दी है बल्कि जिस विषय पर आपने पोस्ट लिखी है, उस विषय पर आपसे प्रश्न किया है।
    अगर आप अपने धार्मिक महापुरूषों की रीतियों की आलोचना का अधिकार स्वयं के लिए मानती हैं और उसका स्रोत बताना भी उचित नहीं समझती हैं तो आज हरेक यही कर रहा है। दूसरे भी आपसे यही कहेंगे।
    आप स्वयं सोचिए कि आप अपनी अपील के खि़लाफ़ ही क्यों जा रही हैं ?

    हमारे ब्लॉग पर एक नारी ब्लॉगर अपना नाम देने पर बड़ा विवाद पैदा कर चुकी है। ऐसी संभावना को शून्य करने के लिए ही हमने आदरणीय मिश्रा जी का नाम देकर लिंक दिया है। 
    सादर !