Sunday, November 25, 2012

मानव जाति की वास्तविक विडम्बना manav jati

यह बात बिल्कुल सही है कि बहुत सी बातें मौलवी साहिबान और पंडित जी अपने विवेक से बताते हैं और कई  बार ऐसा भी होता है कि धर्म की गददी पर ऐसे स्वार्थी तत्व बैठ जाते हैं जिनका मक़सद परोकपकार और ज्ञान का प्रचार नहीं होता बल्कि शोषण होता है। आज ऐसे तत्व ज़्यादा हैं लेकिन धार्मिक जन भी हैं।
धर्म जीवन की गुणवत्ता बढ़ाता है, जीने की राह दिखाता है। सबको बराबरी और प्रेम की शिक्षा देता है। ईश्वर सबको आनंदित देखना चाहता है। इसीलिए वह मनुष्य का मार्गदर्शन करता है। 
उसके मार्गदर्शन का नाम ही ‘धर्म‘ है, 
अपनी तरफ़ से मनुष्य जो कुछ चलाता है, वह दर्शन है।
दुनिया में दर्शन बहुत से हैं जबकि धर्म केवल एक है और सदा से बस एक ही है।
यही एक धर्म कल्याणकारी है।
लोग अपने स्वार्थ में पड़कर एक धर्म के अनुसार व्यवहार न करके अपने बनाए हुए दर्शनों में चकराते रहते हैं।
मानव जाति की वास्तविक विडम्बना यही है।
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यह कमेंट पल्लवी सक्सेना जी की पोस्ट पर किया गया है-
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