Saturday, May 12, 2012

इलाज के नाम पर गर्म होता हवसख़ोरी का बाज़ार

अंतर्मंथन: ज़रा संभल के --- स्वास्थ्य के मामले में चमत्कार नहीं होते .

पर हमारी टिप्पणी

चमत्कार न होते तो डाक्टर को मौत न आती।

ऐसा देखा जा सकता है कि बहुत बार हायजीनिक कंडीशन में रहने वाले डाक्टर बूढ़े हुए बिना मर जाते हैं जबकि कूड़े के ढेर पर 80 साल के बूढ़े देखे जा सकते हैं।
मिटटी पानी और हवा में ज़हर है लेकिन लोग फिर भी ज़िंदा हैं।
क्या यह चमत्कार नहीं है ?

लोग दवा से भी ठीक होते हैं और प्लेसिबो से भी।

भारत चमत्कारों का देश है और यहां सेहत के मामले में भी चमत्कार होते हैं।
हिप्नॉटिज़्म को कभी चमत्कार समझा जाता था लेकिन आज इसे भी इलाज का एक ज़रिया माना जाता है।
जो कभी चमत्कार की श्रेणी में आते थे, उन तरीक़ों को अब मान्यता दी जा रही है।
एक्यूपंक्चर का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है लेकिन उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अगर मान्यता दी जा रही है तो सिर्फ़ उसके चमत्कारिक प्रभाव के कारण।
होम्योपैथी भी एक ऐसी ही पैथी है।
वैज्ञानिक आधार पर खरी ऐलोपैथी से इलाज कराने वालों से ज़्यादा लोग वे हैं जो कि उसके अलावा तरीक़ों से इलाज कराते हैं।
पूंजीपति वैज्ञानिकों से रिसर्च कराते हैं और फिर उनकी खोज का पेमेंट करके महंगे दाम पर दवाएं बेचते हैं।
वैज्ञानिक सोच के साथ जीने का मतलब है मोटा माल कमाने और ख़र्च करने की क्षमता रखना।
भारत के अधिकांश लोग 20-50 रूपये प्रतिदिन कमाते हैं। सो वैज्ञानिक सोच और वैज्ञानिक संस्थान व आधुनिक अस्पताल उनके लिए नहीं हैं। इनकी दादी और उसके नुस्ख़े ही इनके काम आते हैं।
यही लोग वैकल्पिक पद्धतियां आज़माते हैं, जिनके पास कोई विकल्प नहीं होता।

बीमारियां केवल दैहिक ही नहीं होतीं बल्कि मनोदैहिक होती हैं।
...और मन एक जटिल चीज़ है।
मरीज़ को विश्वास हो जाए कि वह ठीक हो जाएगा तो बहुत बार वह ठीक हो जाता है।
मरीज़ को किस आदमी या किस जगह या किस बात से अपने ठीक होने का विश्वास जाग सकता है, यह कहना मुश्किल है।
यही वजह है कि केवल अनपढ़ व ग़रीब आदमी ही नहीं बल्कि शिक्षित व धनपति लोग भी सेहत के लिए दुआ, तावीज़, तंत्र-मंत्र करते हुए देखे जा सकते हैं।
आधुनिक नर्सिंग होम्स के गेट पर ही देवी देवताओं के मंदिर देखे जा सकते हैं। मरीज़ देखने से पहले डाक्टर साहब पहले वहां हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं कि उनके मरीज़ों को आरोग्य मिले।

आपकी पोस्ट अच्छी है लेकिन चिकित्सा के पेशे को जिस तरह सेवा से पहले व्यवसाय और अब ठगी तक में बदल दिया गया है, उसी ने जनता को नीम हकीमों के द्वार पर धकेला है।