Thursday, October 6, 2011

अवज्ञा का अंजाम दंड के सिवाय क्या है ?

नास्तिकों ने बता दिया है कि ईश्वर होता नहीं है
और सत्ता पर काबिज लोगों का कानून कुछ बिगाड नहीं पाता।
सो न तो ये लोग ईश्वर-अल्लाह के प्रकोप से डरते हैं और न ही ये कानून से डरते हैं।
ये किसी से नहीं डरते और जो भी इन्हें सुधरने के लिए कहता है उसे ये जेल के भीतर कर देते हैं, चाहे अन्ना हो या संजीव भट्‌ट।
गरीबों की उपेक्षा असंतोष को जन्म देगी और अंसतोष से बगावत पैदा होगी, उसमें भी जनता ही मरेगी।
उसके बाद फिर जो सरकार बनेगी, उसमें फिर खुदगर्ज और बेईमान लोग कुर्सियों पर कब्जा जमा लेंगे।
हालात अब ऐसे हैं कि अब इंसान की अक्ल फेल है और फिर भी वह खुदा पर ईमान लाने के लिए और उसकी आज्ञा मानने के लिए तैयार नहीं है।
अवज्ञा का अंजाम दंड के सिवाय क्या है ?
वही मिल रहा है।
----------------------------
देखिये 

गरीबी ----- एक आकलन



देश के गरीबों में भी एच आई जी, एम आई जी और एल आई जी निर्धारण करने की बहस आजकल जोर शोर से चल रही है ! गरीबों में गरीब यानी की महा गरीब की प्रतिदिन आय ३२ रुपये तय हो या अधिक इस पर सरकार ने खूब समय और धन व्यय किया है ! जब एक बार यह तय हो जायेगा तब इस पर विचार किया जायेगा कि इन दुखी लोगों की किस तरह और क्या मदद की जाये ! आखिर इसमें भी लंबा समय लगेगा ही ! अंत में यह सहायता भी तो उसी पाइप लाइन से गरीबों को उपलब्ध कराई जायेगी जिसमें भ्रष्टाचार के अनेकों छेद हैं और जिनसे लीक होकर सारा धन असली हकदारों तक पहुँचने से पहले ही काफी मात्रा में बाहर निकल जाता है ! यह सब ड्रामा उसी प्रकार है जिस तरह हमें पता होता है कि बाढ़ हर साल आनी ही है इसलिए बाढ़ पीड़ितों के लिये नाव, कम्बल और आटे दाल का प्रबंध तो किया ही जाना है परन्तु बाढ़ रोकने के लिये क्षतिग्रस्त बाँधों की मरम्मत और नये बाँध बनाने का कोई उपाय नहीं किया जाता !
गरीबों और महा गरीबों को पहचान कर फौरी मदद पहुँचाने की कोशिश अपनी जगह है पर सरकार का प्रमुख लक्ष्य गरीबी हटाना होना चाहिये ! गरीब को गरीब ही रख कर उसको सस्ता अनाज खिलाना ही सरकार का एकमात्र कर्तव्य नहीं होना चाहिये ! यह काम तो तत्काल हो ही जाना चाहिये क्योंकि हमारे पास अनाज सरकारी गोदामों में भरा पड़ा है और सड़ रहा है जिसको रखने तक के लिये जगह नहीं है ! लेकिन प्रमुख समस्या है लोगों की गरीबी दूर करना !
इस समस्या का हल ऐसे लोगों के लिये रोज़गार पैदा करना है जो शिक्षा से तो वंचित हैं ही उनके पास ज़मीन व धन भी नहीं हैं जिसकी सहायता से वे कोई रोज़गार कर सकें ! ऐसे गरीबों की आमदनी का सिर्फ एक ही ज़रिया है और वह है किसी कारखाने अथवा निर्माण स्थल पर मजदूरी करना या खेत खलिहानों में नौकरी करना क्योंकि इन सभी स्थानों में अकुशल या अप्रशिक्षित व्यक्ति भी खप जाते हैं ! अब करना यह है कि ऐसे प्रोजेक्ट्स को चिन्हित किया जाये और उन्हें बढ़ावा दिया जाये जिसमें गरीब तबके के लोगों को बड़ी मात्रा में काम मिल सके !
व्यापार के क्षेत्र में वैश्वीकरण की नीतियों ने हमारे देश में बड़ा विप्लव ढाया है ! भारत का सारा बाज़ार चीनी सामानों से भरा पड़ा है ! यही सामान अगर हमारे देश में बने तो यहाँ के लोगों के लिये रोज़गार के अवसर बढ़ें और हमारे देश में औद्योगीकरण को सहारा मिले लेकिन सरकार की दोषपूर्ण नीतियों के कारण यह संभव नहीं हो पाता ! चीन से आयातित सामान जिस कीमत पर बाज़ारों में उपलब्ध है वही सामान अपने देश में जब हम बनाते हैं तो उसकी कीमत कहीं अधिक बैठती है ! चीन अपने देश के बने हुए सामान को भारत और विश्व में सस्ता बेचने के लिये अपने उद्योगों को सस्ती बिजली, सस्ता कच्चा माल व सस्ती सुविधाएँ उपलब्ध कराता है ! इसी की वजह से वहाँ के उत्पादों की बिक्री बढ़ती है और अधिक से अधिक चीनी जनता को रोज़गार के अवसर मिलते हैं ! इसके विपरीत हम इस सस्ते सामान को इम्पोर्ट कर अपने उद्योगों की कठिनाइयों को बढ़ा रहे हैं ! इस तरह ना सिर्फ हम अपने देश के हुनरमंद कामगारों को बेरोजगार बना कर घर बैठा रहे हैं बल्कि उनके आत्मसम्मान को चोट पहुँचा कर उन्हें महा दरिद्रों की श्रेणी में पहुँचा रहे हैं ! अपने देश में व्यापारी को ना सिर्फ अपने लिये कमाना पड़ता है बल्कि उसे अपने सिर पर सवार नौकरशाह और चिर क्षुधित नेताओं की भूख मिटाने के लिये भी जोड़ तोड़ करनी पड़ती है ! नतीजतन भारत के उत्पाद अपने देश में ही मंहगे हो जाते हैं !
यह ध्यान देने की बात है कि इतना संपन्न अमेरिका मात्र 9% बेरोजगारी से चिंतित है और इसे अपनी सरकार की असफलता मान रहा है ! अपने देश में तो यदि परिवार में एक व्यक्ति भी रोज़गार में लगा है तो उस परिवार को बेरोजगार नहीं माना जाता ! हकीकत तो यह है कि हमारे देश में काम करने योग्य जन शक्ति का 40% तो पूर्ण रूप से बेरोजगार है और बाकी 30% आंशिक रूप से व बचे हुए 30% ही पूर्ण रूप से बारोजगार हैं !
लेकिन इस समस्या का हल भी मुश्किल नहीं है ! नीतियों का बदलाव ज़रूरी है ! ऐसे उपक्रम जिसमें अधिक से अधिक मैन पावर का इस्तेमाल हो उन्हें बढ़ावा मिलना चाहिये ! कच्चे माल पर और सुविधाओं पर अनावश्यक टैक्स नहीं लगने चाहिये ! ऑटोमैटिक मशीनों का इस्तेमाल सिर्फ उसी दशा में किया जाना चाहिये जिसमें बेहतर गुणवत्ता का लाभ मिल रहा हो और वह ज़रूरी भी हो ! उदाहरण के लिये हथकरघे से बुनी चादरें, परदे और तौलिए आदि यदि हमको सस्ते बनाने हैं तो कपास, लघु उद्योगों में काम आने वाली बिजली आदि व अन्य सुविधाओं को सस्ता करना होगा ! शायद इसके लिये सब्सीडी भी देनी पड़ेगी ! इस तरह की वस्तुओं को आयातित वस्तुओं के अनहेल्दी कम्पीटीशन से बचाने के लिये उचित नीतियां भी बनानी होंगी ! मकसद सिर्फ एक है कि हमारी जनता को रोज़गार मिले और गरीबी दूर हो ! हो सकता है कि इससे सरकारी खजाने पर दबाव बढ़े लेकिन वह दबाव निश्चित रूप से उस भार से तो कम ही होगा जो गरीबों के नाम से सब्सीडी देने के लिये खर्च किया जायेगा क्योंकि परिपाटी के अनुसार इस योजना में भी भ्रष्टाचार का बोलबाला तो रहेगा ही रहेगा !
सबसे महत्वपूर्ण बात जो होगी वह यह है कि रोज़गार मिलने पर हमारे देश के गरीब का आत्मसम्मान बढ़ेगा और वह महसूस करेगा कि उसने अपनी मेहनत से रोटी कमाई है ना कि महा दरिद्र की श्रेणी में खड़े होकर सरकारी राशन भीख में माँग कर अपना पेट भरा है !

साभार : साधना वैद जी