Thursday, February 17, 2011

हमारे पूर्वज लड़कियों की शादियाँ उनके रजस्वला होने से पहले 8-10 वर्ष की उम्र में ही कर देते थे Marriage in childhood

हमारे पूर्वज निश्चय ही महान थे लेकिन इसका ज्ञान यहाँ मेरे अलावा जिन लोगों को है उनमें से किसी एक का भी नाम हिंदी-संस्कृत में नहीं है
@ आदरणीय राज भाटिया जी ! आपके बुज़ुर्ग पागल थे या नहीं , आपकी इस बात पर तो मैं कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि कुछ पीढ़ियों पूर्व जो आपके पूर्वज हैं सेम वही पूर्वज मेरे भी हैं और इतिहास बताता है कि उनकी परंपरा यह थी कि वे लड़कियों को घर का काम सिखाते थे , घर से बाहर निकलने भी कम देते थे , उन्हें पढ़ने लिखने भी नहीं देते थे , लड़कियों को अपनी जायदाद में हिस्सा भी वे नहीं देते थे , वे बुजुर्ग अपनी लड़कियों की शादियाँ उनके रजस्वला होने से पहले 8-10 वर्ष की उम्र में ही कर देते थे , विधवा होने पर उसे सती कर देते थे या किसी कोने में डाल देते थे लेकिन उसका पुनर्विवाह नहीं करते थे, जो आदमी दहेज के कारण अपनी लड़की की शादी नहीं कर पाता था वह उसे देवदासी बना देता था और देवताओं के पुजारी पंडे उसे वेश्या बना देते थे और आज भी बना रहे हैं । शब्दकोष में विधवा शब्द का एक अर्थ वेश्या भी अंकित है ।
ये थे आपके पूर्वजों के संस्कार । ये संस्कार हरेक विधवा को मनहूस और वेश्या बना देते हैं ।
आपके पूर्वज विवाह को एक ऐसा संस्कार बताकर गए हैं जिसमें एक औरत अपने पति से सात जन्मों के लिए बंधी होती है । ऐसे में केवल पति की देह का अंत होता है , उसके साथ उसके रिश्ते का नहीं । तब पहले पति के साथ रिश्ता बाक़ी होने के बावजूद भी औरत अगर भौतिक ज़रूरतों की ख़ातिर किसी अन्य पुरूष का साया अपने ऊपर लेती है तो उसे पत्नी किसकी कहा जाएगा ?
ऐसे थे आपके पूर्वजों के संस्कार
जिन्हें ढोने के लिए अब आप ख़ुद भी तैयार नहीं हैं ।

आपको काल्पनिक महानता के ख़ोल से निकलकर समस्याओं का सच्चा समाधान ढूंढना होगा और वह भी आपको आपके पूर्वजों के पूर्वजों की परंपराओं में ही मिल जाएगा ।
अनवर जमाल उस गूढ़ रहस्य और सच्चे समाधान को जानता है लेकिन आप नहीं जानते ।
अगर मेरे अलावा यहाँ संस्कृत नामधारी कोई अन्य व्यक्ति जानता हो तो वह बताए कि उनकी परंपराओं में लड़की और लड़के को मिलकर अपना वंश चलाने की अनुमति किस आयु में दी जाती थी ?

हमारे पूर्वज निश्चय ही महान थे लेकिन इसका ज्ञान यहाँ मेरे अलावा जिन लोगों को है उनमें से किसी एक का भी नाम हिंदी-संस्कृत में नहीं है ।

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Posted by DR. ANWER JAMAL to अमन का पैग़ाम at Wednesday, February 16, 2011




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इस कमेन्ट को 'अमन के पैगाम' से आज हटा दिया गया .
इस कमेन्ट में ऐसी क्या कमी है ?
क्या इसमें कोई भी ऐसी बात है जिसे हम सभी अपने कोर्स में नहीं पढ़ते ?
हमारे बच्चे भी इन बातों को कोर्स में पढ़ते हैं.
सच्चाई को कैसे कोई झुठला  सकता है ?