Sunday, January 30, 2011

धर्म का ग़द्दार कौन और इल्ज़ाम किस पर ? Hypocrite

पछुआ पवन (pachhua pawan): To Dr Anwar Jamal On अब बताईये कि आपको मेरी किस बात पर ऐतराज़ है ?

@ जनाब पवन कुमार मिश्रा जी ! मैं आपसे सहमत हूँ और मैं भी यही मानता हूँ कि धर्म परिवर्तन करना ग़द्दारी करना है। आज समाज में बड़ी मात्रा में धर्म परिवर्तन की घटनाएं देखने में आ रही हैं । लोग विभिन्न कारणों से व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से धर्म परिवर्तन कर रहे हैं। बहुत से संगठन हमारे समाज में धर्म परिवर्तन की प्रेरणा दे रहे हैं जो कि एक निंदनीय कर्म है। आखिर लोग अपने धर्म को बदलने के लिए तैयार क्यों हो जाते हैं ?
ईसाई मिशनरीज़ पर आरोप लगाया जाता है कि वे लोगों को लालच देकर उनका धर्म बदल देते हैं लेकिन बहुत लोग बुद्धिस्ट भी बनते हैं और बुद्धिस्ट प्रचारक लोगों को कोई लालच नहीं देते। तब लोग अपना धर्म क्यों बदल लेते हैं ?
इसके विपरीत समाज में बहुत लोग ऐसे भी हैं जो अधर्म के काम से पलटकर धर्म पर आ जाते हैं । हर तरह के लालच को छोड़कर और हर तरह की परेशानियाँ झेलकर भी वे धर्म नहीं छोड़ते। आदमी और आदमी में इतना बड़ा अंतर क्यों है ?
कोई धर्म छोड़ रहा है और कोई अधर्म ।
लेकिन यह कैसे पता चलेगा कि कौन धर्म छोड़ रहा है और कौन अधर्म ?
मत और संप्रदाय को तो धर्म नहीं कहा जा सकता ।
तब धर्म क्या है ?
धर्म को जानना होगा ताकि धर्म परिवर्तन को रोका जा सके ,
ताकि धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों को वापस धर्म पर लाया जा सके ,
ताकि अधर्म को छोड़ने वाले महान कर्मवीरों के पुरूषार्थ को उचित सम्मान किया जा सके ,
ताकि जो अपने स्वार्थ और सुविधा की ख़ातिर धर्म के उसूल ही बदलकर पूरे समाज का ही धर्म बदल देते हैं ऐसे ग़द्दारों को ग़द्दारों के रूप में पहचाना जा सके ,
ताकि कोई वफ़ादार और ग़द्दार को हरेक पहचान ले और कोई ग़द्दार किसी वफ़ादार को ग़द्दारी का इल्ज़ाम देकर अपने आप को झूठी संतुष्टि न दे सके ।

हरेक चीज़ अपने गुण आदि से पहचानी जाती है ।
हमें चाहिए कि धर्म के ग़द्दारों को भी उनके लक्षण से पहचानना सीखें , धर्म और धार्मिकता को बढ़ाने के लिए , धर्म के अभ्युत्थान के लिए ऐसा करना आज अपरिहार्य है ।
आप इस परम पावन काम को शुरू कीजिए , मैं आपका साथ दूंगा । यदि वे लक्षण मुझमें मिलेंगे तो मैं ख़ुद को धर्म पर ज़रूर लाऊंगा और अगर ग़द्दारी के लक्षण आपमें मिलेंगे तो आपकी मर्ज़ी होगी , आप चाहे धर्म पर लायें या आज जैसे ही बने रहें , मैं आपसे कोई आग्रह नहीं करूंगा ।
-------------------------------------
@ जनाब पवन कुमार मिश्रा जी ! आपके कहने पर मैंने दोबारा आपके दिए हवाले से कुछ ग्रहण करने की कोशिश की लेकिन वे भी मैक्समुलर के हवाले की तरह अपूर्ण हैं।
आपने दूसरे हवाले में केवल में लेखक का नाम ‘पी. एल. गौतम‘, किताब का नाम ‘प्राचीन भारत‘ और पेज नं. 126 लिख दिया है। इससे कुछ भी पता नहीं चलता कि पी. एल. गौतम जी वैदिक सभ्यता को 4000 वर्ष पुरानी मानते हैं या 2 अरब वर्ष पुरानी ?
आपको उनका कथन भी उद्धृत करना चाहिए था ताकि उनका मंतव्य मुझ पर स्पष्ट हो सकता। आपको उस किताब के प्रकाशक का पता भी देना चाहिए था ताकि मैं मूल किताब मंगाकर उसे चेक भी कर सकूं, जैसा कि मैं करता हूं।
यही ग़लती आपने ‘ऋषि‘ शब्द के बारे में श्री वेद प्रकाश उपाध्याय जी का हवाला देते हुए भी दोहराई है। उसमें भी आपने यह नहीं बताया है कि आपने उनका यह कथन किस पुस्तक के किस पृष्ठ से लिया है ?
मैं उन्हें निजी तौर पर नहीं जानता, सो मैं उनसे कन्फ़र्म भी नहीं कर सकता।
मैं पुनः अनुरोध करूंगा कि या तो आप बहस न करें और अगर करें तो अपने नज़रिये के हक़ में तर्क दें और तर्क की पुष्टि के लिए प्रमाण दें और जब प्रमाण उद्धृत करें तो उसकी पूरी निशानदेही करें कि यह किस पुस्तक से लिया गया है और इस पुस्तक का प्रकाशक कौन है ?
आपकी हरेक सही बात को मैं ज़रूर मानूंगा।
...........................................................................................................
‘(छिद्र) अन्वेषी जमाल साहेब आप शायद इस बात के विशेषज्ञ हैं कि मूलार्थ को छोड़कर मात्र शब्दों के फेर में ही पड़ा रहा जाए।‘
@ मेरे मनमोहक अमित जी ! आपसे मैं एक लंबे समय से संवाद करता आ रहा हूं। क्या मैंने कभी आपको इल्ज़ाम देकर बात शुरू की है ?
जैसे कि आपने बात के शुरू में ही मुझे ‘(छिद्र)अन्वेषी‘ कह दिया है। अगर मैंने आपके साथ कभी ऐसा बर्ताव नहीं किया है तो फिर मैं भी आपके द्वारा ऐसे पुकारे जाने का मुस्तहिक़ नहीं हूं। यह सिर्फ़ एक बदतमीज़ी है। मैंने आपको बता दिया है। अब आगे से भी आप ऐसा ही करना चाहें तो आपकी मर्ज़ी। आप अपने व्यवहार के स्वामी हैं, जैसा चाहे बरतें। दुश्मनों की ज़बान से अश्लील गालियां सुनकर भी मुझे सिर्फ़ प्रसन्नता ही मिलती है। लेकिन किसी अपने से ज़रा सी बात तकलीफ़ देती है। आप मेरे हैं। यह मैं आपको शुरू में ही बता चुका हूं और यह सच है।
ख़ैर, आपके अनुसार मूल मुद्दा है ‘आस्था के सही-ग़लत के निर्धारण का‘।
ठीक है, लेकिन जब आस्था की बात चलेगी तो आस्था के स्रोत की बात भी आएगी और आस्था वालों का ज़िक्र भी आएगा। उनके ज़िक्र के बिना इस मुद्दे का निर्धारण संभव हो तो कृप्या आप उस विधि को ज़रूर बताएं। तब आपके तरीक़े से ही बात की जाएगी।
मुझे अच्छा लगा कि आपने मेरे अमल को पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. के आदर्श पर परखने की कोशिश की। आपकी कोशिश बिल्कुल ठीक है। जो बात भी कुरआन के हुक्म और उनके आदर्श के अनुकूल नहीं होगी और मेरे व्यवहार में वह पाई जाएगी तो मैं उसे तुरंत छोड़ दूंगा, चाहे आप उस बात की तरफ़ ध्यान दिलाएं या फिर कोई मुसलमान । जो भी ध्यान दिलाएगा, मैं उसका अहसानमंद रहूंगा।
एक मुसलमान को आप जैसे भाईयों से अलग करने वाली यही चीज़ तो है। आप चाहें तो किसी भी मुसलमान को इस पैमाने से नापकर उसके सही या ग़लत होने का पता कर सकते हैं लेकिन अगर मैं चाहूं कि मैं पता करूं कि अमित जी हिंदू होने का दावा तो करते हैं लेकिन वे अपने दावे में सही हैं या ग़लत तो मैं जान ही नहीं सकता कि आप किस ऋषि या ज्ञानी का अनुसरण करते हैं ?
किसी भी नाम मात्र के हिंदू भाई का कोई भरोसा ही नहीं है कि वह किस का अनुसरण कर रहा है या शायद किसी का भी अनुसरण नहीं कर रहा है ?
कृप्या मुझे भी बताइयेगा कि आपने तो मुझे नाप भी लिया और नसीहत भी कर दी और बिल्कुल ठीक किया लेकिन मैं आपको किस पैमाने से नापूं ?
आप जिस ज्ञान का अनुसरण कर रहे हैं , वह आपको किस स्रोत से मिला और किस आदर्श का अनुसरण आप कर रहे हैं ?
यह तो हो सकता है कि आप एक से ज़्यादा आदर्श सत्पुरूषों का अनुसरण कर रहे हों लेकिन ऐसा तो नहीं होना चाहिए कि आप किसी भी आदर्श का अनुसरण सिरे से कर ही न रहे हों और यहां मंच पर हिंदू धर्म की तरफ़ से बहस ऐसे कर रहे हों कि मानों पता नहीं आप धर्म में कितना आगे बढ़े हुए हों ?
अगर आप किसी आदर्श का अनुसरण ही नहीं कर रहे हैं तो फिर पहले धर्म को धारण कीजिए और फिर दूसरों को नापने और टोकने की कोशिश कीजिए।
आप एक गृहस्थ हिंदू हैं। एक गृहस्थ हिंदू का यौन जीवन कैसा होना चाहिए ?
हिंदू धर्म में स्पष्ट है। आप ईश्वर को साक्षी मानकर कहिए कि आप गृहस्थाश्रम का शास्त्रानुसार पालन कर रहे हैं।
हिंदू धर्म में विवाह को एक संस्कार माना गया है जबकि इस्लाम में उसे एक समझौता। समझौता तलाक़ से भी ख़त्म हो जाता है और किसी एक साथी की मौत से भी जबकि हिंदू विवाह संस्कार पति की मौत से भी पत्नी का संबंध अपने पति से नहीं टूटता और हिंदू धर्म में तलाक़ तो है ही नहीं। अब आप बताइये कि आज अधिकतर हिंदू भाई अपने परिवार में विवाह को एक संस्कार मानते हैं या वे उसे मुसलमानों की तरह एक समझौते में बदल चुके हैं ?
अगर आपने ब्रह्मचर्य आश्रम का पालन नहीं किया है, अगर आप गृहस्थाश्रम के नियमों का पालन भी नहीं कर रहे हैं (छीछालेदर के डर से वे नियम मैं यहां पेश नहीं कर रहा हूं, आप चाहेंगे तो बता दूंगा) और 50 साल का होने के बाद वानप्रस्थ आश्रम के निर्वाह के लिए आप जंगल जाने के लिए तैयार नहीं हैं तो फिर इन आश्रमों के पालन से जी चुराने वाले आप लोग खुद हैं। आप ही वे लोग हैं जो अपनी सुविधा के मुताबिक़ अपने सिद्धांत और अपने संस्कार बदल बैठे हैं और वह भी सामूहिक रूप से। एक आदमी यदि धर्म के सिद्धांत और मान्यताएं बदले तो आप उसे धर्म परिवर्तन करने वाला ग़द्दार कहें और वही जुर्म आप करोड़ों की तादाद में मिलकर करें तो उसे आप धर्म परिवर्तन करना और अपने धर्म से ग़द्दारी करना क्यों न कहेंगे ?
हिंदू धर्म को ख़तरा हमेशा आप जैसे भितरघातियों से ही रहा है। जिन्होंने इसके नीति-नियमों के साथ हमेशा खिलवाड़ किया है और आज आप कर रहे हैं और झंडा ‘धर्म‘ का इतना ऊंचा लेकर चल रहे हैं कि दूसरों को भी सही-ग़लत का उपदेश कर रहे हैं।
बाबा पहले अपने आचरण को तो ठीक कर लीजिए।
दूसरों को ग़द्दारी का खि़ताब बेशक दीजिए लेकिन पहले अपना दामन तो पाक कर लीजिए।
किस की आस्था सही है और किसकी ग़लत, इसे बाद में तय कर लीजिएगा। पहले यह तो देख लीजिए कि अपने पल्ले आस्था है भी कि नहीं ?
आज इल्म का दौर है, तकनीक का दौर है। सच्चाई आज सबके सामने है जिसे झुठलाना आसान नहीं है।

# # # इस बात पर श्री पवन कुमार मिश्रा जी व अन्य बंधु भी ध्यान दें। डाक्टर संजय जी के बारे में आपने जानना चाहा , इसलिए मुझे मजबूरन यह कहना पड़ा, इस आशा के साथ कि 'तत्वयुक्त' होकर विचार करेंगे .


दूसरों को नापने से पहले खुद को नापें।
दूसरों को जांचने से पहले खुद को जांचें।