Wednesday, January 12, 2011

हिंदी में कहावत है और हिंदुओं में इबादत है ‘आग में घी डालना‘ Food in the fire

हिंदी में कहावत है और हिंदुओं में इबादत है ‘आग में घी डालना‘
जनाब पी. के. मिश्रा जी ! आपके खुद के पास दिमाग़ नहीं है और नफ़रत में आप अंधे भी हो चुके हैं। क्या आपने देखा नहीं है कि मैंने कहा है कि आग में घी डालना हराम है अर्थात मना है। आप कोट पैंट पहनकर ज़रूर अपनी चोट कटा बैठे लेकिन आपका मन आज भी अंधविश्वासी है। आप चाहे अंग्रेज़ों से पूछ लीजिए और चाहे अपने से भी गए बीते अफ़्रीक़ा के जंगलियों से पूछ लीजिए कि हम हर साल खरबों रूपये का चंदन, केसर और नारियल लकड़ियों में रखकर आग लगा देते हैं, ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा देते हैं जबकि हमारे यहां लाखों गर्भवती महिलाएं और बालक कुपोषण और भूख के शिकार हैं तो क्या हमारे पास दिमाग़ है तब वे जो जवाब दें वह आकर मुझे बताना।
मैं तो किसी को कुछ कहता नहीं हूं लेकिन आप हैं कि जानवरों की फ़ोटो लगाकर मुझ पर लिखना शुरू कर देते हैं। ये फ़ोटो आप अपनी लगाते हैं या अपने दोस्तों की ?
कहने को तो मैं भी आपको ‘कछुआ कफ़न‘ कह सकता हूं जैसा कि आपने मेरे नाम के साथ खिलवाड़ किया है लेकिन मैंने आज तक कुछ नहीं कहा। क्यों नहीं कहा ?
इसलिए नहीं कहा कि यह बेचारा तो अपनी चोटी पहले ही कटाकर सूट पहनकर अंग्रेज़ सा हुआ फिर रहा है। धर्म के नाम पर इस बेचारे के पास कुछ नहीं है और संस्कृति के नाम पर जो था उससे भी यह अपना पिंड छुड़ाता ही जा रहा है। इस बेचारे कंगाल को क्या अहसास दिलाना। कर लेने दो थोड़ा बहुत गर्व बेकार का। समय का रथ इसकी बाक़ी बची हुई बेकार परंपराओं को रौंदता हुआ खुद निकल जाएगा। ये तो समय के साथ ताक़ंतवर आक़ाओं के मुताबिक़ खुद को बदलने वाली क़ौम का सदस्य है। काफ़ी कुछ बदल गया है और बाक़ी भी बदल जाएगा। बस समय लगेगा और समय का मैं इंतज़ार कर ही रहा हूं।
लेकिन आप हैं कि मुझे कहावतें सिखा रहे हैं और मेरे दिमाग़ पर शक कर रहे हैं। आप अपना दिमाग़ टटोलिए यह गया कहां ?
देश के अन्न में आग लगाना कौन सी समझदारी है ?
एक तो देश में घी का उत्पादन पहले ही कम है और जो है उसे भी देश के फ़ौजियों और बालकों को देने के बजाए आग में डाल दिया जाए। आपकी इन्हीं परंपराओं के कारण पहले भी हमारे देश की फ़ौजे कमज़ोर रहीं और थोड़े से विदेशी फ़ौजियों से हारीं हैं। कम से कम इतिहास की ग़लतियां अब तो न दोहराओ। दिमाग़ हो तो इन ज्ञान की बातों को समझने की कोशिश ज़रूर करना।

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http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/01/standard-scale-for-moral-values.html?showComment=1294670416731#c4645121125829265744
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