Wednesday, January 26, 2011

जायज़ और नाजायज़ लालच का फ़र्क़ पता करने का आदर्श पैमाना क्या है ? The divine scale

@ डाक्टर टी. एस. दराल जी ! समाज को बेहतर बनाने के लिए हरेक फ़र्द को बेहतर बनना होगा और उसके लिए उसे छोड़नी होंगी अपनी बुराईयां , ख़ास तौर पर लालच ।
लेकिन लालच की बहुत सी क़िस्में हैं । एक लालच तो वह होता है जो कि एक बहन को अपने भाई से और एक पत्नी को अपने पति से होता है । सारे रिश्तों की बुनियाद ही लालच है और हमारी पूरी सभ्यता की इमारत इसी लालच पर तामीर हुई है और इसमें कुछ ग़लत है भी नहीं और एक लालच वह होता है कि जब कोई आदमी और कोई क़ौम दूसरों की संपत्ति भी महज अपनी ऐश की ख़ातिर हड़प लेना चाहता है । वे भरपेट खाकर शराब पीते हैं , म्यूज़िक पर झूमते हैं ,ऐश करते हैं और दूसरे रोटी और दवा के लिए भी रोते गिड़गिड़ाते रहते हैं ।
कौन पहचान कराएगा कि कौन सा लालच जायज़ है और कौन सा हराम ?
दुनिया में वह कौन सा आदमी है जिसने हराम और हलाल का इल्म भी इंसानियत को दिया और ख़ुद अपने समाज को इसी हराम-हलाल का पाबंद बनाकर हमारे लिए एक आदर्श भी स्थापित कर दिया ।
नाजायज़ लालच को छोड़ना तब तक मुमकिन ही नहीं है जब तक कि उस सच्चे आदर्श का अनुसरण न किया जाए ।
@ Honesty project democracy वाले भाई जय कुमार झा जी ! 30 जनवरी 2011 को रामलीला मैदान , दिल्ली में होने वाले इस जनयुद्ध का नेतृत्व कौन कर रहा है और वह किस आदर्श का अनुसरण कर रहा है ?
या वह अपने मन की इच्छा पर चलकर खुद भी गुमराह होकर जनगणमन को भी गुमराह कर रहा है ?
उसकी नज़र में सुधार का मॉडल क्या है ?
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मेरे उपरोक्त दोनों कमेँट्स आप 'अमन का पैग़ाम' ब्लाग की ताज़ा पोस्ट पर देख सकते हैं। इस पोस्ट के लेखक हैं डा. टी. एस. दराल जी ।